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'हमारी विभूतियाँ 'स्तम्भ में आप मिलेंगे भारत वर्ष के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकारों में एक ,डॉ वृन्दावन लाल वर्मा जी
'हमारी विभूतियाँ 'स्तम्भ में आप मिलेंगे भारत वर्ष के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकारों में एक ,डॉ वृन्दावन लाल वर्मा जी से :

स्व वृन्दावन लाल वर्माजी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक व सामाजिक उपन्यासकार थे । उनको हिन्दी का वाल्टर स्कॉट कहा जाता है । उन्होंने जिस समय लेखन की शुरुआत की थी; वह युग राजनीतिक, सामाजिक, व सांस्कृतिक दृष्टि से उथल-पुथल का था । एक ओर भारतवर्ष गुलामी का दर्द भोग रहा था, वही समाज में अन्धविश्वास, कुरीतियों अशिक्षा, अज्ञानता का बोलबाला था ।

वृन्दावन लाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी 1889 को मऊरानीपुर झांसी उत्तरप्रदेश में एक कायस्थ परिवार में हुआ था । 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण करके इसे पेशे के रूप में भी अपनाया था । साथ ही वे लेखन कार्य में भी संलग्न रहे । सन् 1958 को आगरा विश्वविद्यालय ने उनको डी०लिट० की उपाधि से विभूषित किया । 1965 को उनको पद्‌मविभूषण से गौरान्वित होने का गौरव मिला ।

समाज के स्त्री-पुरुष दोनों ही वर्ग इन सब विवशताओं में जी रहे थे । डॉ॰ वर्मा ने तत्कालीन समय में ऐतिहासिक, औपन्यासिक परम्पराओं की रचना कर समाज के सभी वर्गों को मातृभूमि और राष्ट्रभक्ति की ओर प्रेरित किया । समाज में कमजोर समझी जाने वाली नारी पात्रों को शक्ति से भरपूर बताया । उनके ऐतिहासिक उपन्यास के नारी पात्र जागति के प्रतीक हैं। उन नारी पात्रों में विषम परिस्थिति का सामना करने की अतुलनीय शक्ति विद्यमान थी । फिर चाहे वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हो या रानी अहिल्याबाई हो या विराटा की पदमिनी, कुमुद हो गढ़कुण्डार की हेमवती हो या फिर कचनार की कचनार देवी या रामगढ़ की अवंतीबाई हो । सभी राजनीतिक और सामाजिक दुःस्थितियों का चुनौतीपूर्ण सामना करती हैं । उनके अतुलनीय त्याग, बलिदान की प्रेरक गाथा को वृन्दावन लाल वर्मा ने व्यक्त किया है।

वे वीरांगनाएं भारतीय सांस्कृतिक आदर्शो का पालन करती हुई अपने प्राणों का उत्सर्ग करने से भी नहीं हिचकती हैं । वे पुरुष पात्रों के लिए भी शक्ति का स्त्रोत बनी हुई होती है । उनके वीरगति को प्राप्त हुए युद्ध के मैदान में नेतृत्व करती हैं । कुछ समाजसेवा का आदर्श रखने वाली नारियां हैं, जिनका चारित्रिक गौरव अत्यन्त उदात्त है । नारी सुलभ कोमलता के साथ पुरुषार्थ व कर्मठता उनके व्यक्तित्व का गुण है । ‘वृन्दावन लाल वर्मा ने अपने उपन्यासों के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक गौरव की रक्षा की है, वहीं उनके सांस्कृतिक, त्यागमय आदर्श को स्थापित किया है । अपने आदर्शो के लिए परिस्थितियों से समझौता करना वे स्वीकारते नहीं ।

उनके उपन्यासों की भाषा-शैली विषयानुकूल व पात्रानुकूल है । संस्कृत के साथ-साथ स्थानीय बोलियों को उन्होंने कथावस्तु के अनुरूप ढाला है । उपन्यास का भौगोलिक परिवेश देश, काल व वातावरण, संवाद योजना विषयानुकूल है । उनकी भाषा में मानवीय व प्राकृतिक संवेदनाओं की पकड़ है । भाषायी साहित्यिक विशेषताओं के कारण उनके कुछ भाषायी दोष नगण्य से प्रतीत होते हैं ।” वृन्दावन लाल वर्मा हिन्दी के ही नहीं, विश्व साहित्य के अमर कथाकार हैँ । साहित्य जगत में वे प्रेमचन्दजी के समान्तर महत्त्व रखते हैं । उन्होंने ऐतिहासिक, सामाजिक उपन्यास, नाटक, एकांकी लिखे । वहीं गद्या गीत, जीवन व बाल-साहित्य की रचना की । उन्होंने बुन्देलखण्ड के जीवन मूल्य और सांस्कृतिक उपलब्धि को राष्ट्रीय पहचान दी । वे हिन्दी के ऐसे पहले कथाकार हैं, जिन्होंने आंचलिकता को प्रतिष्ठित किया ।
23 फरवरी 1989 में उनकी मृत्यु हो गयी । उनकी प्रमुख रचनाओं में भुवमविक्रम, गढ़कुण्डार, विराटा की पद्‌मिनी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, अवंतीबाई, महारानी दुर्गावती, मृगनयनी, टूटे कांटे, संगम, लगन, प्रत्यागत, कुण्डली चक्र ऐतिहासिक तथा सामाजिक उपन्यास हैं । मंगलसूत्र, राखी की लाज, सगुन. बांस की फांस, फूलों की बोली, हंस-मयूर नाटक भी लिखे । उन्होंने शुद्ध ऐतिहासिक उपन्यासों के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर शुद्ध आदर्शवादी व यथार्थवादी उपन्यासों की रचना की । उनके उपन्यासों की नारियां मातृभूमि की रक्षा के लिए सन्नद्ध दिखाई देती है।

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