'हमारी विभूतियाँ ‘ में हम आज चर्चा करेंगे ,पराक्रमी योद्धा ,शूरवीर एवं अपराजेय सम्राट कायस्थ कुल गौरव पुलकेशिन द्वितीय की :
वातापी के चालुक्यों का शासन रायचूर दोआब (तुंगभद्रा व कृष्णा नदियों के मध्य का क्षेत्र) के मध्य में था। उनकी पूर्ववर्ती राजधानी ऐहोल और उत्तरवर्ती राजधानी वातापी थी। पुलकेशिन द्वितीय, महाराज कीर्तिवर्मन प्रथम के पुत्र थे जो उत्तराधिकार के युद्ध में अपने चाचा मंगलेश को परास्त कर ६०९/६१० ई. में राजगद्दी पर बैठे।
पुलकेशिन द्वितीय के बारे में जानकारी उनके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित #ऐहोल_प्रशस्ति से मिलती है, जिसके अनुसार पूरी दुनिया अंधेरे में ढकी हुई थी और जो शत्रु थे उनको पुलकेशिन द्वितीय ने वशीभूत कर लिया था और भारतीय प्रायद्वीप में चालुक्यों को प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था। ऐहोल प्रशस्ति से पता चलता है कि अप्पायिका और गोविंद नामक दो शासकों ने पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध विद्रोह किया परन्तु उनको पराजय मिली। पुलकेशिन द्वितीय ने बनवासी के कदंबों को भी अधीन कर लिया था। तलकड़ के गंग जिनके कदंबों के साथ वैवाहिक संबंध थे, उनको भी पुलकेशिन द्वितीय की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। कोंकण के मौर्य भी पुलकेशिन द्वितीय के अधीन थे।
किन्तु पुलकेशिन द्वितीय की सबसे बड़ी उपलब्धि थी कन्नौज के शासक सम्राट हर्षवर्धन के विजय अभियान को रोकना। ऐहोल प्रशस्ति के अनुसार हर्षवर्धन और पुलकेशिन द्वितीय के मध्य युद्ध नर्मदा नदी के तट पर ६२० ई. में लड़ा गया जिसमें उत्तर के भगवान हर्ष को अपार हानि उठानी पड़ी और नर्मदा नदी को वर्धन साम्राज्य और चालुक्य साम्राज्य की सीमा रेखा के रूप में मान्यता दी गई। चूंकि हर्ष के इतिहासकार और उनके दरबारी कवि बाणभट्ट इस विषय में मौन हैं अतः यह माना जाता है कि इस युद्ध में हर्षवर्धन की पराजय हुई थी।
पुलकेशिन द्वितीय ने अपनी विस्तारवादी नीतियों से पल्लवों को बहुत हानि पहुचायी। उसने पल्लव नरेश महेंद्रवर्मन प्रथम को पराजित किया था। महेंद्रवर्मन के पुत्र नरसिंह वर्मन ने ६४२ ई. में पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध अभियान किया और उन्हें उनकी राजधानी सहित नष्ट कर दिया और "वातापीकोंड" की उपाधि धारण की।