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'हमारी विभूतियाँ 'स्तम्भ में आप स्वाधीनता संग्राम की पहली कतार के योद्धा एवं बिहार के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री स्व महामाया प्रसाद सिन्हा जी से मिलेंगे ;

'हमारी विभूतियाँ 'स्तम्भ में आप स्वाधीनता संग्राम की पहली कतार के योद्धा एवं बिहार के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री स्व महामाया प्रसाद सिन्हा जी से मिलेंगे ;

महामाया प्रसाद सिन्हा एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे .महामाया प्रसाद भारतीय राजनीति में महामाया बाबू के नाम से भी लोकप्रिय थे। इतिहास उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी कहता है। वे बिहार के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। 1909 में बिहार के सीवान जिले के एक बहुत ही कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। महामाया प्रसाद भारतीय राजनीति में महामाया बाबू के नाम से भी लोकप्रिय थे। वे व्यक्तिगत एवं राजनीतिक जीवन में ईमानदारी तथा नैतिकता के प्रबल पक्षधर थे। यह गलत नहीं होगा कि देशरत्न कायस्थ डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा लोकनायक कायस्थ जयप्रकाश नारायण के बाद वे बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे हैं।


जिस वर्ष उन्हें बी. ए.की परीक्षा देनी थी उसी समय नमक सत्याग्रह शुरु हुआ और उन्होंने सत्याग्रह के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी। गांधी जी के आन्दोलन के दौरान महामाया बाबू ने छपरा के जिला स्कूल की खिड़कियों को अपने हाथों से तोड़ दिया था। खिड़कियां तोड़ते समय उनके हाथ पहले से ही लहूलुहान हो चुके थे। पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाकर उनके सारे शरीर को लहूलुहान कर दिया। कुछ देर तक हवाई गोलियां भी चलती रही जिनके बीच वे जिन्दगी और मृत्यु के बीच संघर्ष करते रहे। ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस कारण तीन वर्षों की कठोर कारावास की सजा भी भोगनी पड़ी। महामाया प्रसाद लगातार 16 वर्षों तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अपनी कर्मठता के कारण वे  डा. राजेन्द्र प्रसाद के प्रियपात्र बन गए। 1947 में महामाया बाबू का बिहार प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना उनके राजनीतिक जीवन का एक निर्णायक मोड़ कहा जा सकता है। उस समय उनका मुकाबला अपने ही दल कांग्रेस पार्टी के भ्रष्ट मंत्रियों से हुआ। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। लेकिन कांग्रेस पार्टी तब तक सत्ता तथा धन लोलुप हो चुकी थी। महामाया बाबू ने पाया कि अपनी नैतिक लड़ाई में वे अकेले पड़ गए हैं। उन्हीं दिनों प्रोफेसर आचार्य जे बी कृपलानी ने किसान तथा मजदूर प्रजा पार्टी का गठन किया और महामाया बाबू अपने कुछ साथियों सहित कांग्रेस छोड़ उस दल में शामिल हो गए। 1952 के प्रथम एसेम्बली चुनाव में महामाया बाबू अकेले इस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। फिर 1957 में कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा के लिए चुन लिए गए। 1967 के आम चुनाव के पहले तक वे कांग्रेस के केन्द्रीय अधयक्ष तथा प्रधानमंत्री के पास कांग्रेस में व्याप्त कदाचार के विरूद्ध कई ज्ञापन भेजते रहे पर थक हार कांग्रेस फिर से छोड़ दिए। कांग्रेस त्यागने के बाद उन्होंने राजा रामगढ़ के साथ जन क्रांति दल की स्थापना की। बिहार विधान सभा चुनाव में इस नए दल को 34 सीटें मिली। बाद में जन क्रांति दल का विलय भारतीय क्रांति दल में हुआ। इस चुनाव में बिहार कांग्रेस की करारी हार हुई थी और महामाया बाबू एक तरह से कांग्रेस विरोध के प्रतीक बन गए थे। इसलिए जब संयुक्त विधायक दल के पास सरकार बनाने का मौका आया तो सर्वसम्मति से महामाया बाबू को बिहार का मुख्यमंत्री चुना गया। गैर कांग्रेसवाद का बिहार ने सफल प्रयोग किया। 


महामाया बाबू पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने ‘छात्र शक्ति’ का आकलन कर राजनीति में उस शक्ति का सफल प्रयोग किया। वे छात्रों को अपने ‘जिगर का टुकड़ा’ कहते थे। संभवत: लोकनायक जय प्रकाश नारायण से भी पहले छात्रों की ताकत को पहचानने वाले ये पहले व्यक्ति रहे हैं। कृष्णबल्लभ सहाय तथा महेश प्रसाद सिंह जैसे बिहार राजनीति के दिग्गजों से टक्कर ली और उन्हें मात दी। बिहार के जाति आधारित राजनीति में भूमिहार बहुल क्षेत्र मुजफ्फरपुर तथा गोरेयाकोठी (सीवान) क्रमश: महेश प्रसाद सिंह तथा कृष्ण कान्त सिंह को उनके ही गृह-क्षेत्र में हराया। कायस्थ नेता तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय को भी हराया तथा पटना में कम्युनिस्टों के गढ़ को ढहाते हुए दबंग कम्युनिस्ट नेता कामरेड रामावतार शास्त्री को भारी मतों से शिकस्त दी। यह सबसे दिलचस्प रहा कि महामाया प्रसाद ने जिन- जिन नेताओं को हराया, उसके बाद उन नेताओं का राजनीतिक करियर भी समाप्त हो गया। ये बहुत बड़े पहलवान थे तथा पहलवानी का शौक रखने वाले थे। उनकी 1987 में मृत्यु हो गई।

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